प्रातः वंदन

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       *प्रातः वंदन* 

*अपमान के विष को हँस कर पीनेवाला*

*एक दिन सम्मान के शिखर पर होता है*

*ज्यादातर व्यवहार उन्हीं से रखो*

*उन्हीं का संग करो*

*जो आपको खुश देखना चाहते हों*

*जो सही सलाह दें*

*जिनके मिलने से आपको*

*घुट्टन या हीनभावना न आये*

*अच्छी आदत डालनी पड़ती है*

*बुरी आदतें अपने आप आ जाती है*

*खाने लायक भोजन उगाना पड़ता है*

*जँगली घास अपने आप उग जाती है*

*रिश्ते अंकुरित होते हैं प्रेम से*

*जिंदा रहते हैं संवाद से*

*महसूस होते हैं संवेदनाओं से*

*जिये जाते हैं दिल से*

*मुरझा जाते हैं गलत फहमियों से*

*बिखर जाते हैं अंहकार से*

          गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि केवल मूर्ति में मेरा दर्शन करने वाला नहीं अपितु सारे संसार में प्रत्येक जीव के भीतर और कण-कण में मेरा दर्शन करने वाला ही मेरा भक्त है। प्रत्येक वस्तु परमात्मा की है, अपनी मानते ही वह अशुद्ध हो जाती है। तुम भी परमात्मा के ही हो, परमात्मा से अलग अपना अस्तित्व स्वीकार करते ही तुम भी अशुद्ध हो जाते हो। 

           प्रकृति में परमात्मा नहीं, अपितु ये प्रकृति ही परमात्मा है। जगत और जगदीश अलग-अलग नहीं, एक ही तत्व हैं। परमात्मा का जो हिस्सा दृश्य हो गया है वह जगत है और जगत का हो हिस्सा अदृश्य रह गया वह जगदीश है। 

         

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 संसार से दूर भागकर कभी भी परमात्मा को नहीं पाया जा सकता है। संसार को समझकर ही भगवान् को पाया जा सकता है। जगत में कहीं दुःख, अशांति, भय नहीं है। यह सब तो तुम्हें अपने मनमाने आचरण, असंयमता और विवेक के अभाव के कारण प्राप्त हो रहा है ।


_*'नर नारायन सरिस सुभ्राता। जग पालक बिसेषि जन त्राता।।'*_

_(श्रीरामनाम के दोनों वर्ण नर और नारायण के समान सुन्दर भाई हैं। वैसे तो ये सम्पूर्ण जगत् के पालक हैं पर अपने जन के विशेष रक्षक हैं।)_


एक कथा सुनने में आती है। एक दैत्य ने भगवान् सूर्य को तप करके प्रसन्न किया और उनसे वरदान माँगा कि उसके शरीर में एक हजार कवच हों, जब कोई एक हजार वर्ष तक उससे युद्ध करे तब उसका एक कवच टूटे और कवच के टूटते ही शत्रु की मृत्यु हो जाये। उस दैत्य को मारने के लिए ही भगवान् श्रीनर-नारायण का अवतार हुआ था। एक भाई दैत्य के साथ एक हजार वर्ष तक युद्ध करता। फिर जब कवच टूटने पर उसकी मृत्यु होती तब दूसरा भाई पहले को तप बल से पुनः जीवित कर दैत्य से युद्ध करता। यह क्रम चलता रहा और दैत्य के कवच एक-एक करके टूटते गये। जब दैत्य का केवल एक कवच बचा तब वो भगवान् सूर्य में लीन हो गया और श्रीनर-नारायण बद्रिकाश्रम में तप करने लगे। यही दैत्य द्वापर में कवच के साथ कर्ण के रूप में अवतरित हुआ और फिर श्रीनारायण (भगवान् श्रीकृष्ण) की सहायता से नर (अर्जुन) द्वारा मारा गया।


स्वार्थी के तप से प्राप्त वरदान जगत् के लिये श्राप बन जाता है। इसे हमने पौराणिक कथाओं में पढ़ा है। हम इसे छोटे स्तर पर आज के समय में देखें तो कभी कोई स्वार्थी प्राणी कठिन परिश्रम से प्रभावशाली बन जाता है तो दूसरों को कष्ट देने लगता है। हम सभी अपने जीवन में अलग-अलग तरह से इसको अनुभव करते हैं। इस परेशानी का काट भी तप ही है। श्रीरामनाम को हर परिस्थिति में प्रेम-पूर्वक जपना तप है। इस तप के प्रभाव से सारी परेशानी खत्म हो जायेगी। श्रीरामनाम ही अपने जापक के लिए विशेषरूप से परिस्थिति के अनुसार सामाधान रूप में अवतरित होते रहते हैं।


देखिए, भगवान् श्रीनर-नारायण का अवतार तो सम्पूर्ण जगत् के कल्याण के लिये हुआ था पर अपने जन के तो वो विशेष रक्षक हैं। प्रभु का अपना जन कौन है ? जो प्रभु को अपना मानकर और अपने को प्रभु का मानकर उनकी शरण में आ जाये। ऐसे ही श्रीरामनाम का अपना जन कौन है ? जो उन्हें अपना परम हितैषी मानकर सदा उनका जाप करता रहे। श्रीरामनाम से पूरे जगत् का कल्याण होता ही है- कोई धोखे से सुन ले, बोल दे, पढ़ ले, देख ले, लिख ले- उसका कल्याण होगा। पर जो प्रेमपूर्वक श्रीरामनाम को सदा जपता है उसका तो विशेष कल्याण होगा।


श्रीरामनाम अपने जापक को विशेष बना देते हैं। एक उदाहरण से इसे समझिये। किसी भी देश के प्रधानमंत्री पूरे देश के लिए कार्य करते हैं पर किसी को वो विशेष रूप से चाहते हों तो वो व्यक्ति विशेष बन ही जाता है। प्रधानमंत्री की भी शक्ति सीमित है। पर श्रीभगवान् का ऐश्वर्य, शक्ति, सामर्थ्य आदि तो अनंत हैं। तब स्वयं विचार कीजिये कि जब वो हमारा विशेष ध्यान रखने लगें तो हम कितने विशेष बन जायेंगे। यही बात श्रीरामनाम के जापक के साथ होती है।


भगवान् श्रीनर-नारायण के पुजारी श्रीनारदजी हैं जो बद्रिकाश्रम में उनकी आराधना करते हैं। बद्रिकाश्रम महान सिद्ध क्षेत्र है। श्रीरामनाम के दोनों अक्षर स्वयं भगवान् श्रीनर-नारायण हैं, जापक ही इनका पुजारी है और जापक का जीवन बद्रिकाश्रम बन जाता है, सिद्ध हो जाता है। वो जापक दूसरों के लिए भी एक सिद्ध तीर्थ के समान कल्याणकारी बन जाता है।



 आज का दिन शुभ एवं मंगलमय हो प्रिय मित्र जी l


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