10 अक्टूबर
प्रतिदिन की भांति सीता रसोई संचालन ग्रुप में आज भी ऑनलाइन सत्संग का आयोजन प्रातः 10:00 से 11:00 बजे और दोपहर 1:00 से 2:00 पाटेश्वर धाम के संत राम बालक दास जी के सानिध्य में किया गया, परिचर्चा में सभी भक्तगण जुड़कर अपनी धार्मिक, समसामयिक सामाजिक, जिज्ञासा बाबाजी के समक्ष रखते है और उसका समाधान प्राप्त करते हैं
आज की सत्संग परिचर्चा में रामफल जी ने, जिज्ञासा रखी कि, कर्म बड़ा है या भाग्य बड़ा है, बाबा जी ने बताया कि अवश्य रूप कर्म बडा हैं,
भाग्य में जो लिखा है वह तो होकर ही रहेगा, परंतु इस पर निर्भर होकर आप अपना कर्म करना छोड़ दे तो आप ही हंसी के पात्र बनेंगे, रामचरितमानस के सुंदरकांड में लक्ष्मण जी ने कहा है कि जो भी व्यक्ति भाग्य के भरोसे बैठता है उसे या तो आलसी कहा जाता है या डरपोक कहा जाता है, जो व्यक्ति परिश्रम नहीं करते वे भाग्य के भरोसे बैठे रहते हैं और दोनों ही स्थिति में उसे ही नुकसान होता है इसीलिए भाग्य के भरोसे नहीं बैठना चाहिए अपने कर्मों को सुदृढ़ बनाना चाहिए अच्छे कर्मों से जो भाग्य में नहीं है वह भी मिल जाएगा भाग्य में जो होता है वह बुरे कर्मों से समाप्त भी हो जाता है अतः हमेशा याद रखें कि जो अच्छे कर्म से मिलता है वही बुरे कर्मों से चला भी जाता है
श्रीमती तन्नू साहू जी ने रामचरितमानस के दोहे
" धरि निज रूप गयउ पितु पाही..... को स्पष्ट करने की विनती बाबाजी से की, बाबा जी ने बताया कि रामचरितमानस में प्रसंग आता है कि, भगवान श्री राम माता सीता के बालो में वन के फूलों की माला लगा रहे होते हैं तब इंद्र पुत्र जयंत कौवे का रूप धारण करके माता सीता के चरणों में अपनी चोंच से चोट मारकर कर भाग जाता है जिससे श्रीराम अत्यधिक व्यथित हो जाते हैं माता सीता ने उन्हें प्रथम बार अपने लिए व्यथित होते देखा था, इससे पूर्व संसार के लिए, धर्म के लिए और गौ माता रक्षा के लिए वह हमेशा ही व्याकुल हुए हैं परंतु माता-सीता हेतु इतने व्याकुल वह प्रथम बार हुए थे और उन्होंने जयंत को दंड देने का निर्णय कर लिया, श्री राम के भय से और अपने पाप की अनुभूति करते हुए वह तीनो लोक में दौड़ा तब इंद्र ने भी उसे अपनी शरण में नहीं लिया और उन्होंने कहा कि तुम कौवा बने हो और हमेशा कौवा ही रहोगे तुम मेरे पुत्र के रूप में नहीं रहोगे , ब्रह्मा जी विष्णु जी और महेश जी ने भी उसे अपनी शरण में नहीं लिया, और वह त्राहिमाम् त्राहिमाम करते हुए तीनो लोक में व्याकुल घूमता रहा,
काग भुशुण्डि जी गरुड़ जी को बताते हैं कि, जो भी भगवान श्री राम जी का अनादर करता है उनसे विमुख हो जाता है उसके पाप माता गंगा भी नही धोती, आप सोचोगे कि आपने पाप किया दुष्कर्म किया और गंगा जी में जाकर स्नान कर लिया , ऐसे लोगों के लिए माता गंगा भी वैतरणी का कार्य करती है,
श्रीराम से विमुख हुआ जयंत जब इधर उधर भटक रहा था तो नारद जी को उस पर दया आ जाती है और वह दया भाव से उसके पास जाकर कहते हैं कि तुम श्री राम की शरण में जाओ, तब जयंत कहता है कि जहां तीनो लोक में मुझे शरण नहीं मिली तो क्या श्रीराम जी मुझे अपनी शरण में ले लेंगे तब नारदजी उसे बताते हैं कि तुमने अपराध श्री राम जी के लिए किया ब्रह्मा विष्णु महेश जी के लिए नहीं इसलिए तुम्हें श्री राम की शरण में जाना होगा तब जयंत अपने पाप की क्षमा प्रार्थना करते हुए श्री राम जी के शरण में जाता है और उनके चरणों में शरणागत हो जाता है और श्री राम जी भी अपनी शरण में आए जयंत को स्वीकार कर उसके एक आंख से काना करके उसे छोड़ देते हैं और कहते हैं कि यह हमेशा तुम्हें याद दिलाएगा कि तुम ने माता सीता का अपराध किया था
और जब माता सीता और हनुमान जी की भेंट अशोक वाटिका में होती है तो माता-सीता हनुमान जी को यही प्रसंग याद दिलाती है कि किस तरह एक कौवे के द्वारा उनको चोट पहुँचा देने से श्री राम इतने व्याकुल हो गए थे तो आज रावण के दिन प्रतिदिन मुझे जो वाणी रूपी यातनाएं सहन करनी पड़ रही है उसे जाकर प्रभु श्री राम को अवश्य बताना
इस प्रकार माता-पिता हनुमान जी से संदेश प्रेषित करवाती हैं
यह प्रसंग हमे प्रभु श्री राम की वीरता एवं शरणागत वत्सलता की याद दिलाता है
इस प्रकार आज का आनंद दायक सत्संग पूर्ण हुआ
जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम
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