रामचरितमानस के अयोध्या कांड श्री भरत महाराज जी का प्रसंग" सुनहू भरत भावी प्रबल ..... को स्पष्ट करने की विनती बाबाजी से की गई

 प्रेस हेतु

प्रेस हेतु  9 अक्टूबर प्रतिदिन की भांति सीता रसोई संचालन ग्रुप में ऑनलाइन सत्संग का आयोजन पाटेश्वर धाम के संत राम बालक दास जी द्वारा प्रातः 10:00 से 11:00 बजे और दोपहर 1:00 से 2:00 बजे किया गया जिसमें सभी भक्तगण जोड़कर अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त किए            रामचरितमानस के अयोध्या कांड श्री भरत महाराज जी का प्रसंग" सुनहू  भरत भावी प्रबल ..... को स्पष्ट करने की विनती बाबाजी से की गई  इस प्रसंग को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने इस प्रसंग के मर्म को बताया कि हानि लाभ जीवन मरण सब कुछ विधाता के हाथ है तो यह नहीं कि हम निष्क्रिय हो जाए जब भी हम किसी कथा को सुनते हैं तो ध्यान देना आवश्यक हो जाता है कि जिस के संदर्भ में यह कथा है वह कितना महान है यहां पर भरत  जी को वशिष्ट जी कह रहे हैं कि हे भरत दशरथ जी की मृत्यु पर शोक ना करो यदि   तब भरत जी कहते हैं मां के कर्मों में भैया को बनवास दिलाने में भी मेरा हाथ है ऐसा सभी  सोचते है तब वशिष्ट महाराज जी  भरत जी को समझाते हुए कहते हैं "तो ऐसा भी नहीं है यहां भी विधि का ही विधान है "              प्रकार सभी चीजों को भगवान का लिखा मान कर,  यह सोच कर भी नहीं बैठा जा सकता कि सब कुछ विधि का विधान ही है क्योंकि लाभ हानि तो ईश्वर के हाथ में है तो मैं लाभ अर्जन के लिए मेहनत ना करु  और हानि की परवाह ना करु  जो होगा भगवान करेंगे हम यदि अच्छा कर्म कर रहे हैं और लगे कि गलत फल मिल रहे हैं तब उसे परमात्मा का विधान जान कर स्वीकार कर लेना चाहिए कभी-कभी बीमारी दूर करने हेतु कड़वी दवा भी खानी पड़ सकती है अतः जीवन में संतुलन के लिए दुख झेलना पड़ता है अपने किए गए कर्मों के द्वारा यदि हमें कष्ट मिलता है तो यह  विधि का विधान नहीं हम स्वयं जान बुझ कर कुछ गलत करें और परिणाम विपरीत में हो और भगवान को दोष दे तो यह गलत है परंतु सब अच्छा करते हुए भी कुछ गलत हो रहा हो तो दुखी ना हो इसे भी विधि का विधान मानते हुए अपने मार्ग को प्रशस्त करें बाद की चिंता ना करें आगे बढ़े गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा भी है कि हमें फल की इच्छा ना करते हुए अपने कर्म को करते चलना चाहिए कर्म आप अच्छे करें और उस पर विश्वास रखिए थोड़ा दुख हो सकता है परंतु रूके ना आगे बढ़ते चले आगे अवश्य ही कुछ अच्छा होगा           जतमई से भूषण साहू जी की बिटिया तिमेश्वरी ने जिज्ञासा रखी की, यदि हम अपने लक्ष्य को निर्धारित करते हैं और वह लक्ष्य के लिए हम प्रयत्न  करते हैं परंतु हमें प्राप्त नहीं होता तो कहा जाता है कि इससे भी अच्छा कुछ अवश्य प्राप्त होगा तो क्या यह सत्य है, बिटिया रानी की मन की शंशय को दूर करते हैं बाबा जी ने बताया कि यदि आप निर्धारित लक्ष्य ना भी जीवन में प्राप्त कर पाए तो आशावादी विचारधारा को लेकर आगे बढ़े ईश्वर ने हमारे लिए  कुछ अच्छा ही सोचा होगा अतः हमेशा आशावादी रहे नकारात्मक ना सोचे जब मैंने  किसी का बुरा नहीं किया तो भगवान मेरे साथ कभी बुरा नहीं करेंगे इसी विचार को आगे लेते हुए हमेशा जीवन में प्रयत्न शील रहे और आगे बढ़े          रामफल जी ने रामचरितमानस की चौपाई " मास दिवस कर दिवस भा...... को स्पष्ट करने की विनती बाबाजी से की रामचरित मानस की चौपाइयों को गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस तरह रचा है कि वह एक एक शब्द बहुत ही सोच विचार कर रखा गया है, रामचरितमानस में प्रथम बार में भगवान श्री राम को आनंद सिंधु कहा गया परंतु तब गोस्वामी जी ने सोचा कि आनंद के सिंधु अगर भगवान श्रीराम है तो सिंधु तो गर्मी में घटता बढ़ता है इसीलिए बाद में उन्होंने भगवान श्रीराम को आनंद सुख राशि कहा भगवान श्री राम भक्ति में ऐसा आनंद है जो कभी भी घटता ही नहीं, जब भगवान श्रीराम का जन्म हुआ तो चारों तरफ इतना आनंद हुआ कि 1 दिन में एक महा का आनंद की अनुभूति हुई, नवीन कवियों ने तो यहां तक कि कहा कि जब भगवान श्रीराम का जन्म हुआ तब  आनंद की पराकाष्ठा इतनी अधिक थी कि अबीर गुलाल से मौसम इस प्रकार लाल हो गया कि भगवान सूर्य अस्त होना भूल गये                      सत्संग में राधा कृष्ण के महत्व को वर्णन करने की विनती करते हुए रामफल जी ने जिज्ञासा रखी कि वृंदावन में पत्ते पत्ते डाली डाली राधा जी के नाम का रटन क्यों करते हैं, बाबा जी ने कहा कि यदि हमारे हृदय में श्रीराम और श्रीकृष्ण है तो ऐसा कतई नहीं कि केवल वृंदावन और अयोध्या की गलियों में ही भगवान श्रीराम, श्री कृष्णा कण-कण में  वास  करें आप जहां हैं जैसे भी हैं यदि भक्तों के हृदय में भगवान श्री राम और कृष्ण का वास है आप हर क्षण  राम कृष्ण का सुमिरन करते हैं तो हर कण-कण में जड़ चेतन में आपको श्री कृष्ण और राम दिखाई देंगे उन की भक्ति आपके मन में वास  करेंगी  इस  प्रकार आज का आनंददायक सत्संग पूर्ण हुआ जय गौ  माता जय गोपाल जय सियाराम


9 अक्टूबर

प्रतिदिन की भांति सीता रसोई संचालन ग्रुप में ऑनलाइन सत्संग का आयोजन पाटेश्वर धाम के संत राम बालक दास जी द्वारा प्रातः 10:00 से 11:00 बजे और दोपहर 1:00 से 2:00 बजे किया गया जिसमें सभी भक्तगण जोड़कर अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त किए

           रामचरितमानस के अयोध्या कांड श्री भरत महाराज जी का प्रसंग" सुनहू  भरत भावी प्रबल ..... को स्पष्ट करने की विनती बाबाजी से की गई 

इस प्रसंग को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने इस प्रसंग के मर्म को बताया कि हानि लाभ जीवन मरण सब कुछ विधाता के हाथ है तो यह नहीं कि हम निष्क्रिय हो जाए जब भी हम किसी कथा को सुनते हैं तो ध्यान देना आवश्यक हो जाता है कि जिस के संदर्भ में यह कथा है वह कितना महान है यहां पर भरत  जी को वशिष्ट जी कह रहे हैं कि हे भरत दशरथ जी की मृत्यु पर शोक ना करो यदि   तब भरत जी कहते हैं मां के कर्मों में भैया को बनवास दिलाने में भी मेरा हाथ है ऐसा सभी  सोचते है तब वशिष्ट महाराज जी  भरत जी को समझाते हुए कहते हैं "तो ऐसा भी नहीं है यहां भी विधि का ही विधान है "

             प्रकार सभी चीजों को भगवान का लिखा मान कर,  यह सोच कर भी नहीं बैठा जा सकता कि सब कुछ विधि का विधान ही है क्योंकि लाभ हानि तो ईश्वर के हाथ में है तो मैं लाभ अर्जन के लिए मेहनत ना करु  और हानि की परवाह ना करु  जो होगा भगवान करेंगे हम यदि अच्छा कर्म कर रहे हैं और लगे कि गलत फल मिल रहे हैं तब उसे परमात्मा का विधान जान कर स्वीकार कर लेना चाहिए कभी-कभी बीमारी दूर करने हेतु कड़वी दवा भी खानी पड़ सकती है अतः जीवन में संतुलन के लिए दुख झेलना पड़ता है अपने किए गए कर्मों के द्वारा यदि हमें कष्ट मिलता है तो यह  विधि का विधान नहीं हम स्वयं जान बुझ कर कुछ गलत करें और परिणाम विपरीत में हो और भगवान को दोष दे तो यह गलत है परंतु सब अच्छा करते हुए भी कुछ गलत हो रहा हो तो दुखी ना हो इसे भी विधि का विधान मानते हुए अपने मार्ग को प्रशस्त करें बाद की चिंता ना करें आगे बढ़े गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा भी है कि हमें फल की इच्छा ना करते हुए अपने कर्म को करते चलना चाहिए कर्म आप अच्छे करें और उस पर विश्वास रखिए थोड़ा दुख हो सकता है परंतु रूके ना आगे बढ़ते चले आगे अवश्य ही कुछ अच्छा होगा

          जतमई से भूषण साहू जी की बिटिया तिमेश्वरी ने जिज्ञासा रखी की, यदि हम अपने लक्ष्य को निर्धारित करते हैं और वह लक्ष्य के लिए हम प्रयत्न  करते हैं परंतु हमें प्राप्त नहीं होता तो कहा जाता है कि इससे भी अच्छा कुछ अवश्य प्राप्त होगा तो क्या यह सत्य है, बिटिया रानी की मन की शंशय को दूर करते हैं बाबा जी ने बताया कि यदि आप निर्धारित लक्ष्य ना भी जीवन में प्राप्त कर पाए तो आशावादी विचारधारा को लेकर आगे बढ़े ईश्वर ने हमारे लिए  कुछ अच्छा ही सोचा होगा अतः हमेशा आशावादी रहे नकारात्मक ना सोचे जब मैंने  किसी का बुरा नहीं किया तो भगवान मेरे साथ कभी बुरा नहीं करेंगे इसी विचार को आगे लेते हुए हमेशा जीवन में प्रयत्न शील रहे और आगे बढ़े

         रामफल जी ने रामचरितमानस की चौपाई " मास दिवस कर दिवस भा...... को स्पष्ट करने की विनती बाबाजी से की रामचरित मानस की चौपाइयों को गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस तरह रचा है कि वह एक एक शब्द बहुत ही सोच विचार कर रखा गया है, रामचरितमानस में प्रथम बार में भगवान श्री राम को आनंद सिंधु कहा गया परंतु तब गोस्वामी जी ने सोचा कि आनंद के सिंधु अगर भगवान श्रीराम है तो सिंधु तो गर्मी में घटता बढ़ता है इसीलिए बाद में उन्होंने भगवान श्रीराम को आनंद सुख राशि कहा भगवान श्री राम भक्ति में ऐसा आनंद है जो कभी भी घटता ही नहीं, जब भगवान श्रीराम का जन्म हुआ तो चारों तरफ इतना आनंद हुआ कि 1 दिन में एक महा का आनंद की अनुभूति हुई, नवीन कवियों ने तो यहां तक कि कहा कि जब भगवान श्रीराम का जन्म हुआ तब  आनंद की पराकाष्ठा इतनी अधिक थी कि अबीर गुलाल से मौसम इस प्रकार लाल हो गया कि भगवान सूर्य अस्त होना भूल गये 

                    सत्संग में राधा कृष्ण के महत्व को वर्णन करने की विनती करते हुए रामफल जी ने जिज्ञासा रखी कि वृंदावन में पत्ते पत्ते डाली डाली राधा जी के नाम का रटन क्यों करते हैं, बाबा जी ने कहा कि यदि हमारे हृदय में श्रीराम और श्रीकृष्ण है तो ऐसा कतई नहीं कि केवल वृंदावन और अयोध्या की गलियों में ही भगवान श्रीराम, श्री कृष्णा कण-कण में  वास  करें आप जहां हैं जैसे भी हैं यदि भक्तों के हृदय में भगवान श्री राम और कृष्ण का वास है आप हर क्षण  राम कृष्ण का सुमिरन करते हैं तो हर कण-कण में जड़ चेतन में आपको श्री कृष्ण और राम दिखाई देंगे उन की भक्ति आपके मन में वास  करेंगी 

इस  प्रकार आज का आनंददायक सत्संग पूर्ण हुआ

जय गौ  माता जय गोपाल जय सियाराम

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