पुरुष त्यागी सक नारिहि जो बिरक्त मति धीर।। न तु कामी विषयाबस बिमुख जो पद रघुबीर।


11 अक्टूबर 



आज की सत्संग परिचर्चा में चतुर राम कंवर जी ने रामचरितमानस से जिज्ञासा रखी कि 

ज्ञान भक्ति। निरुपण।।

पुरुष त्यागी सक नारिहि जो बिरक्त

मति धीर।।

न तु कामी विषयाबस बिमुख जो पद रघुबीर।

 इस पर प्रकाश डालने की कृपा करें गुरु देव जी, इसे स्पष्ट करते हैं बाबा जी ने बताया कि यहां पर माया को भी स्त्री और भक्ति को भी स्त्री  रूप में कहा गया है जिस तरह एक स्त्री  किसी दूसरी स्त्री  के रूप को देखकर जलती है वैसे ही मोह माया और भक्ति का संबंध है जिसके हृदय में भक्ति का वास होगा वहां पर माया का प्रवेश कभी नहीं हो सकता और जहां पर माया का वास होगा  वहां पर भक्ति भी कभी आगमन नहीं कर सकती इसीलिए भक्ति की प्राप्ति में माया और माया की प्राप्ति में भक्ति को बाधा माना गया है गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि जो वैष्णवी माया संसार में व्याप्त है इस माया से जुड़कर जीवन जीना तो यथार्थ है ठीक है क्योंकि वह हमारे संबंधों को निखारती है प्रेमभाव, जागृत करती है हम लोग निखर कर दयालु और प्रेमी बनते हैं लेकिन वैष्णवी माया के विपरीत सांसारिक माया स्वार्थी माया या संसार के द्वारा पैदा की गई माया में यदि आप  फसते हैं तो वह आपके लिए हानिकारक तो है ही और आपकी भक्ति मार्ग में भी बाधक है

               हमारे धर्म शास्त्रों में ईश्वर प्राप्ति हेतु परिवार त्यागना आवश्यक नहीं परिवार में रहकर जो ईश्वर को साधते हैं 

वही महान संत कहलाते हैं जो कि परिवार में रहकर अपने साधनों को पूर्ण करते हैं, तो जितनी महिमा विरक्त संतों की है उतनी महिमा हमारे गृहस्थ  संतों की भी है भगवान शिव भी गृहस्थ  हैं ऋषि वशिष्ट वेदव्यास भगवान जी अत्री महाराज जी सभी गृहस्थ हैं परंतु सुखदेव जी की महिमा भी कम नहीं क्योंकि उन्होंने जन्म लेते ही वैराग्य धारण कर लिया था इस प्रकार विरक्ति या गृहस्थ  दोनों ही संत ईश्वर को साधते हैं तो वे  महान है

       सत्संग  परिचर्चा को आगे बढ़ाते  हुए है रामफ़ल जी ने जिज्ञासा रखी की,   

एक  घड़ीआधो  घड़ी  आधो  मे  पुनि  आध।  तुलसी  चर्चा राम की कटे कोट अपराध  इस पर प्रकाश डालने की  कृपा करें

, इस विषय को स्पष्ट करते हुए  बाबा जी ने बताया कि लोग सोचते हैं कि साधु-संतों से मिल लें  तो पाप कट जाएंगे ऐसा बिल्कुल नहीं गलत सोचते हैं अपराध कौन सा है  जो आपने अनजाने में ही किया है रास्ते में चल रहे हो चींटी या मच्छर आपसे गलती से मर जाता है तो ऐसी छोटी भूल भी  अपराध की श्रेणी में आते है संत के संग से जाने अनजाने अपराध की निवृत्ति हो सकती है परंतु जिन अपराधों को आप ने जान बूझकर किया है अपने स्वार्थ के लिए किया है वह क्षमा के योग्य  नही है भगवान के दर्शन से  सत्संग से भी  वह दूर नहीं हो सकते

 सत्संग परिचर्चा में  बाबा जी ने बताया कि परमात्मा से आप भक्ति इस प्रकार करें कि उसमें प्रेम भाव हो प्रेम से सभी, एक दूसरे से जुड़ जाते हैं एक प्रकृति में प्रत्येक जीव आपसे तभी जुड़ेगा जब आप उसे प्रेम भाव से देखेंगे पत्ते पत्ते में भी प्रेम भाव अर्पित करने से  वे आपके हो जाते हैं, यदि आपके हृदय में प्रेम नहीं, जीव जंतु तो क्या  परमात्मा  को भी आप अपने हृदय में स्थान दिलाने में असमर्थ प्रतीत होंगे, अतः भक्ति का सर्वप्रथम मार्ग प्रेम ही है, प्रेम मय भक्ति सर्वोच्च है

  इस प्रकार आज का सत्संग पूर्ण हुआ

 जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम

पुरुष त्यागी सक नारिहि जो बिरक्त  मति धीर।।  न तु कामी विषयाबस बिमुख जो पद रघुबीर।

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