4 अक्टूबर
यमराज से नहीं बुरे कर्मों से डरें - संत रामबालकदास जी
पुराणों में यमराज के दो स्वरूपों का वर्णन मिलता है। गरूड़पुराण के अनुसार चौबीस योजन विस्तार वाले वैवस्वतपुर नामक नगर में यमराज का साम्राज्य है। यमराज यहाॅ दो स्वरूपों में निवास करते हैं। पापियों को दण्ड देने के समय उनका स्वरूप अत्यंत भयंकर होता है तथा जीवों के पाप - पुण्य का निर्णय करते समय उनका स्वरूप अत्यंत सौम्य और सुंदर होता है। इस समय उनकी संज्ञा धर्मराज की होती है।
प्रतिदिन की भांति पाटेश्वरधाम के आनलाईन सतसंग में आज सुबह 10 बजे से 11 बजे एवम दोपहर 1 बजे से 2 बजे परिचर्चा सत्संग का आयोजन हुआए यमराज और उनके दूसरे नाम धर्मराज की विस्तृत व्याख्या करते हुये संत ओरामबालकदास जी ने कहा कि प्राणी की मृत्यु को लाने वाले देवता यम हैं और यमलोक के स्वामी होने के कारण वे यमराज कहलाते हैं। यम अर्थात् संतुलित करना जो प्रकृति, जीवन - मृत्यु के चक्र को संतुलित करता है वही यमराज है। जीव अपने जीवनकाल में जो भी पाप - पुण्य करता है धर्मराज उसके अनुसार उचित फल देने का निर्णय सुनाते हैं। वे जीवों के शुभ - अशुभ कर्मों के निर्णायक हैं। चूंकि यमराज का ही एक रूप सौम्यरूप धर्मराज का है इसलिये इन्हें धर्मराज कहा जाता है। महाराज जी ने कहा यमराज अपनी मर्जी से किसी जीव को मृत्यु दण्ड नहीं देते मृत्यु तो विधाता तय करते हैं यमराज केवल कर्मफल रूप उचित निर्णय सुनाते हैं। यमराज से नहीं बल्कि बुरे कर्मों से डरिये। बुरे कर्म जीव की आयु, आरोग्य, सत्य, बल, सात्विकता को क्षीण करते हैं इसलिये गलत कार्यों से दूर रहें। सत्य से नहीं असत्य से डरें। जो परमात्मा के आश्रित हैं, प्रत्येक परिस्थिति में परमात्मा का चिंतन करते हैं उन्हें किसी का भय नहीं सताता।
आज की परिचर्चा में आनंद दायक भजनों की प्रस्तुति भी हुई
18 सितम्बर से 16 अक्टूबर तक पाटेश्वर धाम गोशाला में चल रहे श्री पुरुषोत्तम मास कथा की जानकारी देते हुए बाबाजी ने बताया कि आप सभी घर बैठे पाटेश्वर धाम के यूट्यूब चैनल
Rambalakdas
पर रोज 2 बजे दोपहर से शाम 5 बजे तक देख सुन सकते है साथ मात्र 1100 की सेवा देकर एक दिन के यजमान आप बन सकते है
इस तरह आज की परिचर्चा सम्पन्न हुई
जय सियाराम
जय गोमाता जय गोपाल
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