गुरु की ममता

                गुरु की ममता                               **.        

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गुरु ममत्व का प्रतिनिधि धारक हैं।मानव निर्माण का शिल्पकार है, जो ममता की तूलिका से रंगों का सृजन करता है। गुरु की महिमा शास्त्रों एवं उपनिषदों में अंकित है। भगवान ने भी गुरु को अपने से उच्च स्थान दिया है। विद्वानों ने गुरु को सर्वोपरी इसलिए माना है क्योंकि माता पिता तो जन्म देने और पालन पोषण के कारण पूजनीय है, लेकिन गुरु जीवन को सार्थक एवं सफल बनाने के लिए वंदनीय है।यह परम सत्य है कि गुरु ही जीवन का उद्धारक है। जन्म देने से भी अधिक योगदान है, गुरु का। इसलिए शिष्य पर उनकी ममता गुरुतर है।वह अपने जीवन का सब कुछ शिष्य को सौंप देता है। नैतिक शिक्षा से लेकर ब्रह्मविद्या तक और जीवविद्या से लेकर आत्मविद्या तक जीवन की यात्रा को निरापद करने वाला यह उपकारी गुरु अपने शिष्य को ज्ञान दान करके पूर्ण मानव  बनाता है। गुरु अपने जीवन में जो भी भौतिक अधिभौतिक शक्तियां ग्रहण करता है,वह समस्त पूंजी अपने सुपात्र शिष्य को प्रदान करने का प्रयास पल प्रतिपल करता है। गुरु शिष्य का संबंध धर्म का पहला अध्याय है, जिसमें जीवन के मार्ग से लेकर जीवन के लक्ष्य को साधने तक की प्रक्रिया में सभी योग्यताओं का प्रवाह सुलभ बनाया जाता है।

माता पिता तो समय के साथ अपने ममत्व को समेटने का उपक्रम करते हैं, भावनाओं पर अंकुश लगाते हैं, लेकिन गुरु की ममता दिन प्रतिदिन बढ़ती जाती है।

समय बीतते यह ममता प्रखर होती जाती है। जीवन के हरक्षण गुरु शिष्य को संरक्षण देता है, मार्गदर्शन करता है, प्रेरणा देता है, बुराइयों से बचाता है, भ्रम एवं संदेह दूर करता है। गुरु बार बार अपने शिष्य की साधना की समीक्षा करता  और आशाओं को बांधता भी  है। 

गुरु की ममता शिष्य के रोम रोम पर बरसती है। आत्मोद्धार का पथ प्रशस्त करने की कृपा करता है। ऐसी ममता अद्भुत और प्राकृतिक है। माता पिता की ममता प्रायः मोह बंधन है, गुरु की ममता कदाचित धर्म बन्धन है।

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