*ऐसे करें मृत्यु की तैयारी*

 *ऐसे करें मृत्यु की तैयारी* _________________

कल्पना करो कि आपको #गंगोत्री या तपोवन की यात्रा पर जाना है और आप अभी कर्नाटक में है।


 कर्नाटक में 40 डिग्री तापमान है गर्मी है और गंगोत्री में 0शून्य डिग्री तापमान है बहुत ठंड है अब घर से आप चलने से पहले अपने बैग में कपड़े आदि रखने की तैयारी कर रहे तो आप गंगोत्री की ठंड का विचार या ध्यान करके सर्दी के गर्म कपड़े, कंबल, जूते आदि रखते हैं...


ताकि जहां पर जाना है वहां सर्दी है, गर्मी के कपड़ों में वहां कष्ट होगा इसलिए तैयारी वहां के अनुसार करते हैं जहां जाना है...

ताकि वहां सुख मिले, दुख नहीं।


ठीक इसी तरह हमारे इस जीवन की यात्रा मृत्यु तक पहुंचेगी इस यात्रा को पूरा करके सबको #मृत्यु तक पहुंचना ही होगा...

इसे ध्यान मे रखकर  हमे अपने कर्म ऐसे करने चाहिए कि जहां हमें पहुंचना है वहां कष्ट ना हो मृत्यु को ध्यान में रखकर अपने कर्म करें...

जहां जाना है उसकी तैयारी करें


हम क्या भूल कर रहे हैं!

जीवन की तैयारी कर रहे हैं मृत्यु को भूल रहे हैं..

जहां जाना है उस मृत्यु की तैयारी नहीं कर रहे...


तात्पर्य यह है कि यदि हम जीवन की तैयारी करते रहे तो मृत्यु #दुखदायी कष्टकारी हो जाएगी मरते समय अत्यंत कष्ट होगा.. क्योंकि मृत्यु की तैयारी तो की ही नहीं थी...


 लेकिन यदि जीने की तैयारी न करके मृत्यु की तैयारी करेंगे तो जीवन स्वतः ही बहुत सुंदर हो जाएगा और मृत्यु सुखदायी होगी फिर जहां जाना होगा वहां भी सुख मिलेगा और यहां भी...


 आचार्य चाणक्य ने जो..

 वर्तमानेन कालेन प्रवर्तन्ते विचक्षणाः

 कहा कि बुद्धिमान व्यक्ति केवल वर्तमान में ही विश्वास करते हैं वह भी मृत्यु को ध्यान में रखकर ही कहा गया है ...


व्यास जी #महाभारत (शांतिपर्व) में कह रहे हैं....


 न कश्चितदपि जानाति किं कस्य श्वो भविष्यति।

अतः श्वः करणीयानि कुर्यादद्यैव बुद्धिमान।।


  "कौन जानता है की कल क्या होने वाला है आज का काम आज ही निपटा लेना चाहिए शाम के लिए कुछ ना छोड़ें " .... 


भीष्म पितामह भी युधिष्ठिर से अंत में यही कह रहे हैं...


को हि जानाति कस्याद्य मृत्यु कालो भविष्यति।

युवा एव धर्मशीलः स्यादनित्यं खलु जीवितम्।।


" कौन जानता है कि आज किसका आखिरी दिन होगा इसलिए युवा रहते ही जब तक इंद्रियों में सामर्थ्य है तभी धर्म का आचरण करना चाहिए।

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