🌷 *संस्कार का असर* 🌷

 🌷 *संस्कार का असर* 🌷


एक राजा के पास सुंदर घोड़ी थी। 

कई बार युद्ध में इस घोड़ी ने राजा के प्राण बचाए और घोड़ी राजा के लिए पूरी वफादार थी। 

कुछ दिनों के बाद घोड़ी ने एक बच्चे को जन्म दिया। बच्चा काना पैदा हुआ, पर शरीर हृष्ट-पुष्ट व सुडौल था।

बच्चा बड़ा हुआ, बच्चे ने मां से पूछा- मां मैं बहुत बलवान हूं, पर काना हूं। यह कैसे हो गया! 

इस पर घोड़ी बोली- बेटा जब मैं गर्भवती थी, तब राजा ने मेरे ऊपर सवारी करते समय मुझे एक कोड़ा मार दिया, जिसके कारण तू काना हो गया। 

यह बात सुनकर बच्चे को राजा पर गुस्सा आया और मां से बोला- मां मैं इसका बदला लूंगा।

मां ने कहा- राजा ने हमारा पालन-पोषण किया है। तू जो स्वस्थ है, सुन्दर है, उसी के पोषण से तो है। 

यदि राजा को एक बार गुस्सा आ गया, तो इसका अर्थ यह नहीं है कि हम उसे क्षति पहुचाएं। 

मगर, उस बच्चे के समझ में कुछ नहीं आया। उसने मन ही मन राजा से बदला लेने की ठान ली।

वह लगातार राजा से बदला लेने के बारे में सोचता रहता था.. 

और एक दिन यह मौका घोड़े को मिल गया। राजा उसे युद्ध पर ले गया। 

युद्व लड़ते-लड़ते राजा एक जगह घायल हो गया। घोड़े के पास राजा को युद्ध के मैदान में छोड़कर भाग निकलने का पूरा मौका था।

यदि वह ऐसा करता, तो राजा या तो पकड़ा जाता या दुश्मनों के हाथों मार दिया जाता। 

मगर, उस वक्त घोड़े के मन में ऐसा कोई ख्याल नहीं आया और वह राजा को तुरंत उठाकर वापिस महल ले आया। 

इस पर घोड़े को ताज्जूब हुआ और उसने मां से पूछा...

मां आज राजा से बदला लेने का अच्छा मौका था, पर युद्व के मैदान में बदला लेने का ख्याल ही नहीं आया और न ही राजा से बदला ले पाया।

मन ने गवाही नहीं दी, राजा से बदला लेने की। ऐसा क्यों हुआ? 

इस पर घोड़ी हंस कर बोली- बेटा तेरे खून में और तेरे संस्कार में धोखा है ही नहीं, 

तू जानबूझकर तो धोखा दे ही नहीं सकता है, क्योंकि तेरी नस्ल में तेरी मां का ही तो अंश है। 

मेरे संस्कार और सीख को तू कैसे झुठला सकता था। 

वाकई यह सत्य है कि जैसे हमारे संस्कार होते हैं, वैसा ही हमारे मन का व्यवहार होता है।

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